स्कंद शश्ठी व्रत: अर्थ, तिथि, पूजा और लाभ

जब हम स्कंद शश्ठी व्रत, एक पारम्परिक हिन्दू व्रत है जो शासनी (सुबह) के शश्ठी समय में रखा जाता है. इसे अक्सर स्कंद शस्ति व्रत कहा जाता है, और यह माँ दुर्गा की शक्ति को सम्मानित करने का तरीका है. इस व्रत का मुख्य उद्देश्य शारीरिक‑मानसिक शुद्धि, माँ दुर्गा से सुरक्षा और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाना है. इतिहास में यह व्रत विशेषकर महिलाएँ और गर्भवती माँओँ द्वारा अपनाया गया, क्योंकि शासनी समय को जीवन ऊर्जा का स्रोत माना जाता है. आज भी कई लोग इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल करते हैं, चाहे वह नियमित रूप से हो या विशेष तिथियों पर.

व्रत की मूलभूत संरचना को समझने के लिए दो सहायक अवधारणाओं को देखना ज़रूरी है: व्रत, ध्यान, परहिज़ा और पूजा के साथ किया जाने वाला आत्म‑शुद्धि का समय और पूजा, देवता या माँ की आराधना, जिसमें मंत्र, अभिषेक और प्रसाद शामिल होते हैं. स्कंद शश्ठी व्रत इन दोनों को मिलाकर एक संपूर्ण आध्यात्मिक प्रक्रिया बनाता है. व्रत के सात दिन में प्रत्येक दिन का अपना विशेष उद्देश्य होता है – पहला दिन शासनी का नुस्खा, दूसरे दिन व्रती को शुद्ध पानी से स्नान, तीसरे दिन कच्चा फलों का सेवन, चौथे दिन दाल‑भात, पाँचवें दिन मीठा दान, छठे दिन उपवास और सातवें दिन वैदिक हवन. इन सभी चरणों को मिलाकर एक सिद्धान्त बनता है: शारीरिक शुद्धि, मन की शांति और मातृ शक्ति की पूर्ति.

स्कंद शश्ठी व्रत की प्रमुख विशेषताएँ

व्रत में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इसका समय‑निर्धारण पंचांग के अनुसार तय किया जाता है. सामान्यतः यह व्रत कार्तिक या अष्टमी माह में, शासनी (सुबह के पहले दो घंटे) समय में शुरू किया जाता है. इस समय को शस्ति कहा जाता है, क्योंकि सूर्य के प्रथम प्रकाश के साथ जड़ता टूटती है और नई ऊर्जा उत्पन्न होती है. इस कारण ही स्कंद शश्ठी व्रत को ऊर्जा‑उत्पादक माना जाता है. व्रती को इस अवधि में शुद्ध जल, नारियल का पानी या फलों का रस मिला कर पीने की सलाह दी जाती है; इससे शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं. इसके अलावा, आसन या हल्की योग‑प्रक्रिया जोड़ने से रक्त संचार बेहतर होता है, जिससे व्रत के लाभ दोगुना हो जाते हैं.

सामाजिक स्तर पर भी इस व्रत का बड़ा असर है. कई परिवारों में व्रती को घर‑परिवार के साथ मिलकर दुर्गा चालीसा या शंकर स्तोत्र पढ़ते देख सकते हैं. यह सामूहिक भावना मनोवैज्ञानिक स्थिरता प्रदान करती है. व्रत के अंत में विशेष दान‑कार्य या मातृ दिवस पर उपहार देना भी प्रचलित है; ऐसा करने से सामाजिक संपर्क मजबूत होते हैं और स्कंद शश्ठी व्रत का पुण्य बढ़ता है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखी जाए तो यह व्रत रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है, पाचन तंत्र को साफ़ करता है और इम्यूनिटी को बूस्ट करता है – यही कारण है कि परिवारों में इसे स्वास्थ्य‑वृद्धि के लिये अपनाया जाता है.

अब आप सोच रहे होंगे कि इस व्रत से जुड़ी नवीनतम जानकारी और विस्तृत मार्गदर्शिकाएँ कहां मिलेंगी. नीचे हमारा संग्रह आपको तिथि‑निर्धारण, पूजा‑विधि, शासनी खाद्य‑विकल्प, व्रत‑भोजन और शास्त्रीय स्रोतों से जुड़ी विस्तृत जानकारी देगा. चाहे आप पहली बार व्रत करने वाले हों या अनुभवियों के लिए नई टिप्स की तलाश में, यहाँ हर लेख आपको कदम‑दर‑कदम मार्गदर्शन देगा. तो चलिए, इस आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करते हैं और देखिए स्कंद शश्ठी व्रत आपके जीवन में कौन‑से सकारात्मक बदलाव लाता है।

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