गुरु पौराणिमा – क्यों है खास?
गुरु पौराणिमा हर साल श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन हम अपने गुरु‑शिष्य बंधन को याद करते हैं और ज्ञान के लिए उनका आभार व्यक्त करते हैं. अगर आप भी उत्सव की तैयारी कर रहे हैं, तो पढ़िए कि क्या करना चाहिए.
गुरु पौराणिमा कब मनाते हैं?
शरद ऋतु में श्रावण का शुक्ल पक्ष सबसे लोकप्रिय है, परन्तु कैलेंडर के आधार पर तिथि हर साल थोड़ा‑बहुत बदल सकती है. 2025 में यह पूर्णिमा 23 अगस्त को पड़ेगी. कई लोग इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और सफ़ेद कपड़े पहनते हैं.
घर और मंदिर में कैसे करें पूजा?
सबसे पहले अपने घर की साफ‑सफ़ाई कर लें, फिर एक छोटी प्लेट या थाली पर फूल, फल और चंदन रखिए. गुरु के चरणों में हल्दी‑लालिमा लगाकर प्रीति से सरसराएं. इसके बाद दीप जलाएँ और ‘गुरु बाण’ (दुर्गा) की कथा सुनें या पढ़ें.
अगर आपके पास कोई पंडित नहीं है, तो आप खुद ही मंत्र जप सकते हैं: “ॐ गुरवे नमः”. यह श्लोक सिर्फ़ पाँच बार दोहराने से भी काफी असर दिखाता है. साथ‑साथ अपने गुरु को धन्यवाद लिखकर एक छोटा कार्ड बनाइए; यह भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाएगा.
भोजन में हल्का और पौष्टिक रखिए. दाल, चावल और सब्जी के साथ मीठे में शरबत या फल रखें. कई परिवारों में इस दिन को विशेष रूप से ‘विद्याभ्यास’ (पढ़ाई) का दिन माना जाता है, इसलिए बच्चे भी पढ़ने‑लिखने की आदतें जारी रख सकते हैं.
यदि आप बाहर मंदिर जा रहे हैं तो पहले फोन करके समय पता कर लीजिए. आजकल कई मंदिरों में ऑनलाइन आरक्षण और डिजिटल दान की सुविधा होती है, जिससे भीड़ से बचा जा सकता है. कुछ स्थान पर गुरू शिखर पर ‘भिक्षु रथ’ भी चलता है – इसे देखना एक अलग ही अनुभव देता है.
गुरु पौराणिमा के बाद कई लोग अपने पुराने गुरु या शिक्षकों को कॉल कर बधाई देते हैं. यह छोटा‑सा फोन कॉल आपका संबंध और मजबूत बनाता है, और साथ‑साथ उन्हें भी खुशी मिलती है.
अगर आप इस उत्सव को सोशल मीडिया पर शेयर करना चाहते हैं तो केवल तस्वीरें नहीं, बल्कि अपने अनुभव लिखिए. इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलेगी और आपके पोस्ट की रीडिंग बढ़ेगी.
अंत में एक बात – गुरु पौराणिमा सिर्फ़ धार्मिक रस्म नहीं, यह हमारे अंदर के सीखने‑सीखाने वाले स्वभाव को जागरूक करता है. इसलिए इस दिन को हँसी‑खुशी और सकारात्मक ऊर्जा से भरें.

गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को: महत्व, गुरु पूजा विधि, और इसकी विशेषता
गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई 2024 को मनाई जाएगी। यह त्योहार अशाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को आता है और हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्म के लिए महत्वपूर्ण है। यह गुरु-शिष्य के पवित्र संबंध का मान्यता दिवस है। इस दिन गुरु पूजा करने का विशेष महत्व है और इसे व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है।
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