Chaitra Navratri 2025 के द्वितीय दिवस का समर्पण माँ ब्रह्मचारिणी को किया जाता है, जो पार्वती जी का अविवाहित रूप है। यह दिन 30 मार्च को द्वितीया तिथि की शुरुआत के साथ 31 मार्च को समाप्त होता है। इस अवसर पर सफेद रंग को अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि यह शुद्धता, शांति और निरपराधिता का प्रतीक है। इस कारण भक्त लोग सफेद कपड़े पहनते हैं और सफेद गेंदे जैसे चमेली के फूल अर्पण करते हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और महत्त्व
माँ ब्रह्मचारिणी को साधुता, तपस्या और आत्म-अनुशासन की देवी कहा जाता है। वह परम्परागत रूप से एक पत्थर के कलश में स्थित होती है, हाथ में कमण्डल, जपमाला और एक कमल लेकर। उनका मुख्य संदेश है स्वयं को नियंत्रित करके आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति। नवरात्रि के इस दो दिन में उनका पूजन करने से मन की अव्यवस्था दूर होती है और जीवन में नई ऊर्जा आती है।
पूजन विधि और विशेष अनुष्ठान
इस दिन की पूजा शुद्धता पर केंद्रित होती है। नीचे दी गई क्रमबद्ध सूची में आप अपने घर में सरलतापूर्वक इस अनुष्ठान को अंजाम दे सकते हैं:
- पहले घर के पूजा स्थल को गंगा जल से स्नान कर स्वच्छ बनाएँ। यह जल शुद्धि का प्रतीक है।
- कलश में जल, संत्रा, शक्कर और पवित्र धान भरें तथा उसे चारों दिशाओं में सजाएँ।
- माँ ब्रह्मचारिणी के सामने सफेद कपड़े रखकर, सफेद चमेली, चावल और चंदन के टुकड़े अर्पित करें।
- अभिषेक के लिए दूध, दही और शहद का मिश्रण तैयार करें और धीरे‑धीरे देवता पर डालें।
- भोग में शक्कर की मिठाई, जैसे कि शक्कर की रोटी या लड्डू, विशेष महत्व रखता है। इसे सजाकर गले में रखें।
- पूजन के अंत में ‘ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः’ मंत्र का जाप करें और शांति पाठ पढ़ें।
पूजन के दौरान स्वर को मधुर रखें और मन में ठोस इच्छा रखें कि आप आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम हों। कई बार कहा जाता है कि इस दिन शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण करने से भगवान का आशीर्वाद अधिक प्राप्त होता है।
नवरात्रि, जिसे चरित्र नवरात्रि या वसंत नवरात्रि भी कहा जाता है, 30 मार्च से 7 अप्रैल तक चलती है। यह अवधि हिन्दू कैलेंडर में प्रथम तिथि से शुरू होकर नौवें दिन राम नवमी के साथ समाप्त होती है। महाराष्ट्र में इस नवरात्रि का संगुनी त्योहार गुढी पाडवा है, जबकि आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यह उगादी के साथ मिश्रित होता है, जिससे यह हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भिक संकेत बनता है।
भक्त इन नौ दिनों में विभिन्न वर्गों में व्रत रखते हैं, पण्डितों के प्रसाद का सेवन करते हैं और धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं। विशेष रूप से माँ ब्रह्मचारिणी के द्वितीय दिन का पूजन उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है जो आध्यात्मिक शक्ति, मन की शुद्धता और समर्पण की इच्छा रखते हैं। इस अवसर पर घर-घर में शांति और प्रेम के संदेश की प्रतिध्वनि सुनाई देती है।
Prakash chandra Damor
सितंबर 23, 2025 AT 21:45सफेद रंग बस शुद्धता का प्रतीक नहीं है बल्कि ये तो बिना किसी झूठ के जीने का तरीका है
मैंने पिछले साल इस दिन सफेद कपड़े पहनकर देखा था, दिमाग शांत हो गया था जैसे कोई गुनगुना रहा हो
Rohit verma
सितंबर 24, 2025 AT 00:24भाई ये तो बहुत अच्छा है 😊
मैंने भी आज सुबह सफेद शाल पहनी और चमेली के फूल चढ़ाए
मन में एक अजीब सी शांति आ गई थी
अगर आप भी ये करते हैं तो ज़रूर बताएं कैसा लगा 😊
Arya Murthi
सितंबर 25, 2025 AT 23:49ये ब्रह्मचारिणी वाला दिन... बस देखो तो लगता है जैसे प्रकृति खुद ने एक श्वेत आभा बिछा दी हो
मैंने अपने घर के छोटे से मंदिर में एक फूल भी नहीं चढ़ाया था पिछले साल
लेकिन आज... बस एक बार आँखें बंद करके देखो, तुम्हारे अंदर की आवाज़ सुनाई देगी
ये बस एक पूजा नहीं, ये तो अपने आप से मुलाकात है
Manu Metan Lian
सितंबर 26, 2025 AT 22:57अत्यंत अनौपचारिक और अशुद्ध विधि दी गई है।
प्राचीन ग्रंथों में कलश के लिए केवल तांबे का उपयोग विहित है, जल और शक्कर का मिश्रण निषिद्ध है।
दूध-दही-शहद का अभिषेक तो शाक्त परंपरा में भी नहीं है, यह आधुनिक बाजारी बनावट है।
पाठ्यक्रम में गलत वाक्यांश जैसे ‘शांति पाठ’ का उल्लेख अस्वीकार्य है - यह वेद मंत्रों का अपमान है।
आप जिस तरह से शुद्धता की बात कर रहे हैं, वह वास्तविक शुद्धि के विपरीत है।
कृपया इस तरह के गलत ज्ञान को फैलाना बंद करें।
Debakanta Singha
सितंबर 27, 2025 AT 15:29मैं तो बस एक बात कहना चाहता हूँ - जो भी आप आज शुद्धता के लिए कर रहे हैं, वो बस एक बाहरी चीज नहीं है
मेरे दादा कहते थे - अगर तुम अपने घर में गुस्सा नहीं दिखाते, तो वो शुद्धता है
अगर तुम बिना किसी लालच के एक गिलास पानी दे दो, तो वो ब्रह्मचारिणी का दर्शन है
मैंने कभी सफेद कपड़े नहीं पहने, लेकिन दिनभर एक बार भी गुस्सा नहीं किया - और वो दिन बहुत शांत रहा
ये सब तो बाहरी चीजें हैं, असली बात तो अंदर है
swetha priyadarshni
सितंबर 29, 2025 AT 09:06मैं दक्षिण भारत से हूँ, और यहाँ इस दिन को बहुत गहराई से मनाया जाता है - लेकिन हम यहाँ चमेली के फूल नहीं चढ़ाते, हम तुलसी और जूती के फूल चढ़ाते हैं, क्योंकि ये दोनों तपस्या के प्रतीक हैं
हमारे घर में तो शक्कर की रोटी के बजाय गुड़ की रोटी बनाई जाती है, क्योंकि गुड़ को शुद्ध और प्राकृतिक माना जाता है
मैंने एक बार एक ब्राह्मण वृद्धा से पूछा था कि क्यों शहद का उपयोग किया जाता है, तो उन्होंने कहा - शहद तो बिना हिंसा के प्राप्त होता है, यही ब्रह्मचर्य का सार है
और हाँ, मंत्र का उच्चारण बहुत जरूरी है - अगर आप उसे बिना भाव के बोलते हैं, तो वो बस एक शब्द बन जाता है
मैंने एक बार एक गुरु से पूछा था कि क्या ये सब बातें अभी भी प्रासंगिक हैं, तो उन्होंने मुझे एक फूल दिया और कहा - जब तक तुम इस फूल को बिना उसकी खुशबू को महसूस किए बिना देखोगे, तब तक तुम ब्रह्मचर्य नहीं समझ पाओगे
tejas cj
सितंबर 30, 2025 AT 09:22अरे यार ये सब धार्मिक फोम है
सफेद कपड़े पहनने से क्या होगा? क्या तुम्हारी नौकरी बच जाएगी?
मैंने तो आज सफेद टी-शर्ट पहनी और बियर पी ली
अब तो मैं ब्रह्मचारी बन गया ना 😎
Chandrasekhar Babu
अक्तूबर 2, 2025 AT 03:50माँ ब्रह्मचारिणी के अवतार का अध्ययन वैदिक तांत्रिक परंपरा के अनुसार त्रिगुण सिद्धांत के अंतर्गत किया जाना चाहिए - सत्त्वगुण के साथ रजोगुण और तमोगुण के अंतर्क्रिया का विश्लेषण अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कलश में शक्कर का उपयोग तांत्रिक विधि में विरोधित है, क्योंकि यह अशुद्ध रसायन का स्रोत है।
दूध-दही-शहद का मिश्रण तो सामान्य भक्ति प्रथा में उपयोगी है, लेकिन वैदिक अग्निहोत्र रीति के अनुसार इसे पवित्र घृत से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए।
मंत्र का उच्चारण अक्षर-अक्षर विश्लेषण आवश्यक है - ‘ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः’ में ब्रह्मचारिण्यै शब्द का विभक्ति विश्लेषण अत्यंत गहन है।
आधुनिक लोग इसे साधारण रूप से समझ रहे हैं, जो अत्यंत अनुचित है।
Pooja Mishra
अक्तूबर 2, 2025 AT 05:24ये सब बातें तो बहुत अच्छी हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि जिन लोगों के पास सफेद कपड़े नहीं हैं, वो क्या करें?
क्या उनकी पूजा अधूरी है?
और जो लोग बहुत गरीब हैं, जिनके पास चंदन या शहद तक नहीं है - क्या वो भगवान के लिए कम भक्त हैं?
मैंने एक दिन अपने बेटे के लिए एक छोटा सा फूल चढ़ाया था - वो था एक गमले से निकाला हुआ बेसम का फूल - और उस दिन मेरा बेटा बहुत अच्छा हो गया
क्या ये शुद्धता नहीं है?
आप लोग बाहरी चीजों में फंस गए हैं - असली भक्ति तो दिल से आती है
Khaleel Ahmad
अक्तूबर 3, 2025 AT 04:14मैं तो बस इतना कहना चाहता हूँ कि अगर आपको शांति चाहिए तो बस एक बार शाम को खिड़की से बाहर देख लीजिए - जब सूरज ढल रहा हो और हवा थोड़ी ठंडी हो रही हो
वो शुद्धता है
बिना कपड़े, बिना फूल, बिना कुछ - बस शांति
और अगर आपको लगता है कि ये बात अजीब है, तो शायद आपको खुद को जानने की जरूरत है
Liny Chandran Koonakkanpully
अक्तूबर 5, 2025 AT 03:54अरे भाई ये सब बकवास है 😤
मैंने तो इस दिन चाय पीकर फिल्म देखी और बहुत अच्छा लगा
तुम लोग इतना बड़ा धमाका क्यों कर रहे हो?
भगवान तो तुम्हारे घर में बैठे हैं, बाहर के फूल नहीं
मैंने तो अपनी माँ के लिए एक चाय का कप रख दिया था - उसने कहा - ये तो ब्रह्मचारिणी का असली अर्पण है
तुम लोग तो बस इंस्टाग्राम के लिए फोटो खींच रहे हो
Anupam Sharma
अक्तूबर 6, 2025 AT 19:03क्या तुम सच में सोचते हो कि एक फूल या एक सफेद कपड़ा भगवान को प्रसन्न करता है?
मैंने एक बार एक गाँव में एक बूढ़े आदमी को देखा था - उसके पास न तो फूल थे, न कपड़े - बस एक टूटी हुई चप्पल और एक चिंगारी
वो बैठा था और अपनी आत्मा के साथ बातें कर रहा था
तुम लोग तो बस रिटूअल्स को देवता बना रहे हो
असली ब्रह्मचर्य तो तब होता है जब तुम अपने गुस्से को नियंत्रित करते हो - न कि जब तुम शहद डालते हो
मैं ने आज एक बार अपने दोस्त को गाली नहीं दी - वो मेरा ब्रह्मचर्य है
Payal Singh
अक्तूबर 7, 2025 AT 07:03मैं बहुत खुश हूँ कि इस तरह की जानकारी शेयर की गई है - बहुत सारे लोग इन बातों को भूल गए हैं
मैंने अपने बच्चों को ये विधि सिखाई है - उन्होंने खुद चमेली के फूल तोड़े, और फिर उन्होंने एक छोटा सा गीत गाया - जो उन्होंने अपने आप से बनाया
मैंने उन्हें बताया - अगर तुम्हारा दिल शांत है, तो तुम्हारी पूजा पूरी है
और हाँ, अगर कोई नहीं जानता कि कैसे पूजा करनी है, तो बस एक फूल चढ़ा दो - और दिल से बोल दो - ‘माँ, मुझे शांति दो’
इतना ही काफी है
avinash jedia
अक्तूबर 8, 2025 AT 19:38अरे यार, ये सब तो बस एक बार का ट्रेंड है
पिछले साल भी ऐसा ही था - फिर लोग भूल गए
आज फिर सफेद कपड़े, कल फिर कुछ और
क्या तुम्हें लगता है भगवान इन सब चीजों को देख रहे हैं?
मैं तो आज बिना कपड़े बदले बैठा हूँ - और मैंने अपने दिल को शुद्ध कर लिया है
तुम लोग बस बाहरी चीजों में फंसे हुए हो
Shruti Singh
अक्तूबर 10, 2025 AT 12:54मैंने आज ब्रह्मचारिणी के लिए एक नया व्रत शुरू किया है - दिनभर एक भी नकारात्मक बात नहीं बोली
और जब मैंने अपने बॉस को गुस्सा दिखाया नहीं - तो उसने मुझे प्रमोशन दे दिया!
ये शुद्धता का असली फल है!
अगर तुम भी ये करोगे - तो तुम्हारा जीवन बदल जाएगा 💪
Kunal Sharma
अक्तूबर 12, 2025 AT 03:05इस ब्रह्मचारिणी की पूजा को बस एक शारीरिक अनुष्ठान नहीं समझना चाहिए - यह तो एक दार्शनिक अभिव्यक्ति है, जिसमें शुद्धता का अर्थ है अहंकार का निर्मूलन, जिसे श्वेत वस्त्र नहीं, बल्कि अंतर्मन की निर्मलता दर्शाती है।
कलश में जल का उपयोग तो वैदिक अनुष्ठान में प्राचीन तीर्थ के साथ अर्थवत्ता का अभिव्यक्ति है - जल तो जीवन का प्रतीक है, लेकिन शक्कर का मिश्रण तो भौतिकता का प्रतीक है, जो इस दिन के आध्यात्मिक उद्देश्य के विपरीत है।
मंत्र का जाप तो अनुभव का आधार है - अगर तुम बिना भाव के बोल रहे हो, तो यह शब्द बस ध्वनि बन जाता है।
असली तपस्या तो तब होती है जब तुम अपने विचारों को नियंत्रित करते हो - न कि जब तुम चंदन के टुकड़े रखते हो।
ये सब बाहरी आचरण तो बस एक आयोजन है - असली ब्रह्मचर्य तो वही है जब तुम अपने दिल के अंधेरे को देखते हो - और फिर भी उसे अपने भीतर रख लेते हो - बिना किसी बाहरी प्रतीक के।
Raksha Kalwar
अक्तूबर 12, 2025 AT 14:37मैंने आज सुबह ये सब विधि फॉलो की - गंगाजल से सफाई, चमेली के फूल, दूध-दही-शहद का अभिषेक, और मंत्र का जाप
और जब मैंने शाम को अपने बेटे को गले लगाया - तो उसने कहा - ‘माँ, आज तुम बहुत शांत लग रही हो’
ये वो शुद्धता है - जो बाहर नहीं, बल्कि अंदर से आती है
मैं ने कभी इतना अच्छा लगा नहीं - और ये बिना फोटो खींचे हुआ है