शैलपुत्री पूजा क्या है?
जब हम शैलपुत्री पूजा, एक प्राचीन हिन्दू अनुष्ठान है जिसमें पर्वत (शैल) को पुत्र मान कर उसे देवता के रूप में पूजते हैं की बात करते हैं, तो पहले समझना ज़रूरी है कि इसका मूल उद्देश्य क्या है। यह पूजा मुख्यतः शिव, शैलपुत्री रीतियों का प्रमुख देवता, शक्ति और अनुष्ठान का पर्याय को सम्मानित करने के इरादे से की जाती है। शैल को पवित्र मानकर, भक्त उसे जीवन‑संतुलन, शक्ति और शाश्वतता का प्रतीक मानते हैं। इस तरह शैलपुत्री पूजा केवल एक रिवाज नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ आध्यात्मिक जुड़ाव को भी दर्शाती है।
शैलपुत्री पूजा में पर्वत, भौगोलिक रूप से ऊँचा, पवित्र स्थल जो हिन्दू मिथकों में अक्सर देवताओं का निवास माना जाता है ही नहीं, बल्कि उसके चारों ओर मौजूद ताड़पत्र, धूप, अक्षत जैसी सामग्री भी अनिवार्य है। इन सामग्रियों का प्रयोग इस बात की पुष्टि करता है कि पूजा का हर तत्व एक दूसरे से जुड़ा है—पर्वत के शैविक स्वरूप से लेकर मंत्रों की ध्वनि तक। यही कारण है कि इस अनुष्ठान में उपयोग किए जाने वाले मंत्र, आउटलाइन वाले वैदिक वचन जो आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत करते हैं को सही उच्चारण और क्रम में कहा जाना चाहिए।
इतिहास की नजरें बताती हैं कि शैलपुत्री पूजा की उत्पत्ति प्राचीन वैदिक ग्रन्थों में मिलती है, जहाँ पहाड़ों को मनुज-देवताओं के बीच मध्यस्थ माना गया था। समय के साथ, इस रिवाज ने क्षेत्रीय विविधताएँ अपनाई—हिमालय में धारीवाला शिखर, दक्षिण में स्नातक पर्वत—परन्तु मूल सिद्धान्त वही बना रहा: शैल को पुत्र मानते हुए उसके लिए प्रसाद, धूप और पवित्र जल चढ़ाए जाते हैं। इस प्रक्रिया में प्रमुख क्रियाएँ—जलेबी (आकस्मिक प्रसाद), तांडव (नृत्य) और आरती (प्रकाश) शामिल होती हैं।
वर्तमान में शैलपुत्री पूजा को कई प्रमुख पर्वों के साथ जोड़ा जाता है, जैसे शिवरात्रि, उल्का पात (अवधि जहां शैल को जल देने की रीति), और मौसम परिवर्तन के समय। इन अवसरों पर स्थानीय समुदाय बड़े उत्सव के रूप में इस पूजा को आयोजित करते हैं, जहाँ ग्राम सभा के प्रमुख, पुजारी, और सामान्य भक्त मिलकर शैल को नंदन (पुत्र) का व्रत लेते हैं। इस दौरान विशेष रूप से शैलपुत्री मंत्र का उच्चारण किया जाता है, जैसे "ॐ नमः शिवाय" और "शैल पितरं शूरा"। ये मंत्र शैल के पवित्रता को बढ़ाते हैं और भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं।
व्यावहारिक दृष्टिकोण से, शैलपुत्री पूजा करने के लिए कुछ मूलभूत तैयारी आवश्यक है। पहले शैल का चयन करें—ऐसा पर्वत जो स्थानीय मान्यताओं में पवित्र माना जाता हो। फिर शैल को साफ़ पानी से स्नान कराएँ, ताड़पत्र चढ़ाएँ, और अग्नि में घी और दीपक जलाएँ। उसके बाद, एक पवित्र कप में अक्षत (अन्न) और फलों का मिश्रण रखें। अंत में, पुजारी या अनुभवी भक्त द्वारा मंत्रों का उच्चारण करके शैल को पुत्र का आशीर्वाद दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में मन की शुद्धता और शारीरिक स्वच्छता की बराबर महत्त्वता है।
शैलपुत्री पूजा का सामाजिक प्रभाव भी उतना ही गहरा है। यह पूजा सामुदायिक एकता को मजबूत बनाती है, क्योंकि सभी लोग मिलकर शैल की शुद्धता और स्वरूप को समान मानते हैं। साथ ही, यह पर्यावरण संरक्षण की भावना को भी जगाता है—पर्वत को पुत्र मानकर उसकी रक्षा करने की ज़िम्मेदारी बढ़ती है। यही कारण है कि कई NGOs ने इस अनुष्ठान को पर्यावरणीय जागरूकता के साथ जोड़ दिया है, जिससे युवा वर्ग में संरक्षण की भावना विकसित होती है।
यदि आप पहली बार शैलपुत्री पूजा कर रहे हैं, तो कुछ अतिरिक्त सलाहें उपयोगी होंगी। सबसे पहले, स्थानीय मंदिर या पुरोहित से संपर्क कर शैल के इतिहास और उसकी पवित्रता को समझें। दूसरा, पूजा के दिन हल्का और शुद्ध भोजन रखें, जिससे मन और शरीर दोनो में शांति बनी रहे। तीसरा, सभी वस्तुओं को पुनः उपयोगी बनाकर पर्यावरणीय दबाव को कम करें। अंत में, पूजा के बाद शैल को साफ़ पानी से धोतें और आसपास के वन्य जीवन को बिना बाधा के रहने दें।
अब आप शैलपुत्री पूजा के बारे में बुनियादी समझ और व्यावहारिक टिप्स हासिल कर चुके हैं। नीचे आप विभिन्न लेख, समाचार और गाइड देखेंगे जो इस अनुष्ठान के विभिन्न पहलुओं—ऐतिहासिक, सामाजिक, और तकनीकी—पर प्रकाश डालते हैं। चाहे आप एक अनुभवी भक्त हों या पहली बार जानने वाले, इस संग्रह में आपको उपयोगी जानकारी मिलेगी जो आपके पूजा अनुभव को और समृद्ध बनाएगी।

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