रूसी युद्घपोत: आज क्या चल रहा है?

आपने हाल ही में खबरें देखी होंगी कि रूसी नौसेना के बड़े पोत कई बार भारतीय समुद्री क्षेत्र के पास आए हैं। क्यों? इसका असर हमारे सुरक्षा, व्यापार और कूटनीति पर कैसे पड़ता है? आइए इसे सरल शब्दों में समझते हैं।

रूस के युद्घपोत कौन‑से हैं और क्या कर रहे हैं?

सबसे पहले बात करते हैं उन पोतों की जो अक्सर सुने जाते हैं – किलियन, पुतिन क्लास एयरडिफेंस क्रूज़र और नई एंटी‑सबमिसर फ्रिगेट। ये बड़े जहाज़ न सिर्फ रॉकेट और टॉरपीडो ले जाते हैं, बल्कि हवाई रक्षा सिस्टम भी रखते हैं। हाल के महीने में इन पोतों ने अटलांटिक से भारतीय महाद्वीप तक का सफ़र पूरा किया है। कई बार वे मल्लिकार्जुन जैसे द्वीप समूह के पास रूटिंग बदलते दिखे।

इनकी मुख्य वजह दो चीज़ें हैं: भारत‑रश रणनीतिक साझेदारी को दिखाना और भारतीय समुद्र में अपनी मौजूदगी का संदेश देना। रूस अक्सर इस तरह के पोतों से अभ्यास करता है, जिससे वह अपने नौसैनिक क्षमताओं को विश्व स्तर पर प्रदर्शित कर सके।

भारतीय सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है?

जब कोई विदेशी युद्धपोत हमारे तट के करीब आता है, तो भारतीय नौसेना तुरंत रडार में उसका ट्रैक बनाती है और आवश्यक कदम उठाती है। इसका मतलब यह नहीं कि हम टकराव की ओर बढ़ रहे हैं – बल्कि हमें सतर्क रहना पड़ता है। अगर पोत किसी अंतरराष्ट्रीय जल सीमा में रहता है, तो वह अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत वैध माना जाता है। लेकिन लगातार आने से समुद्री ट्रैफ़िक में गड़बड़ी और संभावित दुरुपयोग का खतरा बढ़ सकता है।

व्यापारियों को भी इसका असर महसूस हो सकता है। भारतीय पोर्टों पर जहाज़ों की देर या रूट बदलने जैसी समस्याएँ कभी‑कभी रूसी पोतों के कारण उत्पन्न होती हैं, खासकर जब वे अभ्यास या मनीपुलिंग मिशन में होते हैं। इसीलिए भारत ने अपने समुद्री सुरक्षा एजेंसियों को अधिक सजग बनाया है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाया है।

साथ ही, यह स्थिति भारतीय सरकार को राजनयिक तौर पर भी तेज़ी से प्रतिक्रिया देने की जरूरत बनाती है। रूस के साथ हमारे आर्थिक और ऊर्जा संबंधों को देखते हुए दोनों पक्ष एक-दूसरे के कदमों को समझना चाहते हैं। इसलिए आपसे अक्सर सुनाई देती हैं द्विपक्षीय संवाद, समुद्री अभ्यास समझौते और सामुद्रिक सुरक्षा पर संयुक्त बयान।

अगर आप रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इसको नहीं देख पाएँ तो भी यह आपके देश के विदेश नीति का एक हिस्सा है। हर बड़े पोत की आवाज़ हमारे राष्ट्रीय हितों को आकार देती है – चाहे वह ऊर्जा परियोजनाओं के लिए हो या समुद्री सुरक्षा के लिए।

संक्षेप में, रूसी युद्घपोत सिर्फ नौसैनिक उपकरण नहीं हैं; वे रणनीतिक संकेत देते हैं कि कौन कहाँ अपना प्रभाव बनाना चाहता है। भारत को सतर्क रहना, सहयोग बढ़ाना और आवश्यक होने पर कूटनीति से समाधान निकालना ही सबसे बेहतर तरीका रहेगा।

आशा है अब आपको रूसी युद्घपोतों के बारे में स्पष्ट समझ मिल गई होगी। आगे भी हमारी साइट पर ऐसे अपडेट देखते रहें – ताकि आप हमेशा सही जानकारी के साथ तैयार रह सकें।

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ग्वांतानामो बे, क्यूबा में अमेरिकी नौसेना की पनडुब्बी USS Helena की उपस्थिति ने रूसी युद्धपोतों की इलाके में गतिविधियों के बीच तनाव बढ़ा दिया है। रूसी पोतों के प्रशिक्षण अभ्यास के बीच, अमेरिकी पनडुब्बी की यह यात्रा दक्षिणी कमान के क्षेत्र में एक नियमित पोर्ट यात्रा का हिस्सा है।

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