बाय ऑफ बंगाल लोज़ प्रेशर की पूरी समझ

जब बात बाय ऑफ बंगाल लोज़ प्रेशर बंगाल की खाड़ी में बनता कमवायुमंडलीय दबाव वाला सिस्टम है, जो अक्सर भारी बारिश और आँधियों को उत्पन्न करता है. इसे अक्सर बोब लो प्रेशर कहा जाता है, और इसका असर भारत, बांग्लादेश और नजदीकी पहाड़ी क्षेत्रों में महसूस होता है. यह प्रणाली मानसून गर्मियों में दक्षिण एशिया में मिलते‑जुलते मौसमी हवाओं का प्रमुख घटक है के पैटर्न को भी बदल सकती है।

भू‑विज्ञान कहता है कि वायुमंडलीय दबाव वायुमंडल में हवा के वजन को दर्शाता है, जो मीटर‑बार या हिस्टर्स में मापा जाता है में अचानक गिरावट लोज़ प्रेशर बनाती है। जब समुद्र सतह का तापमान 28°C से ऊपर जाता है, तो जलवाष्पीकरण बढ़ता है, वायुमंडल में नमी का स्तर बढ़ता है और इर्द‑गरम हवा ऊपर उठती है। इस उठान से नीचे की ओर दबाव घटता है, जिससे ठंडी हवा के साथ मिलकर सायकलॉन के रूप में विकसित हो सकता है। इस प्रक्रिया को आसानी से सायक्लॉन एक तीव्र वायुमंडलीय घूर्णन वाला तूफ़ान है, जो समुद्र या भूमि पर तब बनता है जब लोज़ प्रेशर पर्याप्त शक्ति हासिल कर लेता है कहा जाता है।

भविष्यवाणी की बात करें तो हवामान पूर्वानुमान विभिन्न उपग्रह, रडार और ग्राउंड स्टेशन डेटा का इस्तेमाल करके भविष्य की मौसम स्थितियों को अनुमानित करने की वैज्ञानिक प्रक्रिया है लोज़ प्रेशर की गति, दिशा और तीव्रता को ट्रैक करने में मदद करती है। सटीक मॉडलिंग के बिना, लोगों को अचानक आए भारी बारिश या बाढ़ जैसी आपदाओं से बचना मुश्किल हो जाता है। इसलिए मौसम विभाग लगातार समुद्री बायो‑फ़िज़िकल पैरामीटर को मॉनिटर करता है, जिससे लोज़ प्रेशर के बदलाव को तुरंत चेतावनी में बदला जा सके।

लोज़ प्रेशर का असर सिर्फ मौसम तक सीमित नहीं रहता, यह कृषि, जल संसाधन और जनजीवन को भी गहराई से प्रभावित करता है। जब लोज़ प्रेशर तेज़ी से विकसित होता है, तो धान, गन्ना और कई जल-फसलें अव्यवस्थित पूर से लाभ उठाती हैं, पर साथ ही जलभराव और सड़न की जोखिम भी बढ़ती है। नदियों के किनारे रहने वाले गाँवों में जलस्तर तेज़ी से बढ़ जाता है, जिससे बचाव‑सहायता कार्यों की जरूरत पड़ती है। इस कारण से स्थानीय प्रशासन अक्सर बाय ऑफ बंगाल लोज़ प्रेशर के पूर्वानुमान के आधार पर राहत योजना और फसल बीमा प्रीमियम को समायोजित करता है।

समय के साथ लोज़ प्रेशर के पैटर्न में बदलाव भी देखा गया है। वार्षिक आँकड़ों के मुताबिक, पिछले दो दशकों में खाड़ी में बनने वाले लो प्रेशर की औसत गति थोड़ी कम हुई, पर उनका तीव्रता बढ़ी है। इस बदलाव को समुद्र सतह के बढ़ते तापमान और ग्लोबल वार्मिंग की प्रवृत्ति से जोड़ा गया है। इसलिए वैज्ञानिक लगातार इस क्षेत्र पर दीर्घकालिक अध्ययन कर रहे हैं, ताकि भविष्य में संभावित अम्लीय वर्षा, समुद्री जलस्तर वृद्धि और मौसमी अनियमितता को समझा जा सके। हमें उम्मीद है कि अब आप बाय ऑफ बंगाल लोज़ प्रेशर के कारण, उसकी विज्ञानिक पृष्ठभूमि और भारत में होने वाले व्यापक प्रभावों के बारे में स्पष्ट तस्वीर बना पाए हैं। नीचे आप संबंधित लेखों में लोज़ प्रेशर के नवीनतम घटनाक्रम, विशेषज्ञ विश्लेषण और स्थानीय प्रभावों के बारे में अधिक जानकारी पढ़ सकते हैं।

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