अहोई माता: पूजा, पंचांग और नवरात्रि के बारे में सब कुछ
जब हम अहोई माता, एक पूजनीय माँ है जिनकी आराधना मुख्यतः उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में होती है. Also known as अहोई माँ, वह कई परिवारों की सुरक्षा और समृद्धि की प्रतीक मानी जाती है।
पंचांग में शश्ठी तिथि का महत्व
ज्यादातर भक्त पंचांग, हिंदू कैलेंडर है जो तithi, nakshatra और योग दर्शाता है का उपयोग करके सही पूजा समय तय करते हैं। पंचांग बताता है कि कब शश्ठी तिथि, एक विशेष lunar day है जो देवी‑देवता की पूजा के लिए शुभ माना जाता है आती है, जिससे अहोई माता के अनुष्ठान में ऊर्जा बढ़ती है। इस तरह "अहोई माता" और "पंचांग" आपस में जुड़े हुए हैं – पंचांग शश्ठी तिथि निर्धारित करता है, और शश्ठी तिथि अहोई माता की पूजा को और प्रभावी बनाती है।
नवरात्रि के दौरान अहोई माता की आराधना विशेष रूप से प्रचलित है। नवरात्रि, सात रात और सात दिन का हिन्दू उत्सव है जो विभिन्न माँ देवियों को समर्पित होता है में हर दिन अलग‑अलग रूप की माँ का पूजन किया जाता है, और कई परिवारों में अहोई माता को अंतिम दिवस में विशेष सम्मान दिया जाता है। इसका कारण यह है कि नवरात्रि में शक्ति, साहस और कष्टों से मुक्ति के प्रतीक मां को जागरूक किया जाता है, और अहोई माता का स्वरूप इन्हीं गुणों को प्रतिबिंबित करता है।
जब हम शश्ठी तिथि की बात करते हैं, तो यह याद रखना ज़रूरी है कि यह तिथि केवल कैलेंडर में नहीं, बल्कि सूर्य‑चंद्र की स्थिति के अनुसार निर्धारित होती है। इसलिए हर साल शश्ठी तिथि अलग‑अलग हो सकती है, और पंचांग के माध्यम से सही समय निकालना अनिवार्य बन जाता है। उचित समय पर की गई अहोई माता की पूजा न सिर्फ आशीर्वाद लाती है, बल्कि घर में शांति और स्वास्थ्य भी बढ़ाता है।
हिंदू धर्म में अनेक देवे‑देवियाँ एक दूसरे की शक्ति को बढ़ाती हैं। अहोई माता की आराधना में हनुमान जी, भक्तियों के विश्वास में शक्ति, साहस और संकट-मुक्ति के प्रतीक हैं का भी उल्लेख किया जाता है, क्योंकि हनुमान जी की भक्ति से माँ के आशीर्वाद में अतिरिक्त बल प्राप्त होता है। कई स्थानीय मान्यताएँ कहती हैं कि हनुमान जी की पूजा के बाद ही अहोई माता का स्वरूप पूर्णतः प्रकट होता है। इस परस्पर समर्थन से भक्तों को दोहरी सुरक्षा का अनुभव होता है।
आधुनिक समय में भी श्रद्धालु ऐसे सरल उपाय अपनाते हैं: पंचांग से शश्ठी तिथि निकालना, नवरात्रि के दौरान श्रम‑साधना बनाये रखना, और हनुमान जी के उतार‑चढ़ाव को ध्यान में रखकर विशेष मंत्रों का जाप करना। इन सब के बीच एक सुसंगत तंत्र बनता है – जहाँ "अहोई माता" को "पंचांग" के साथ जोड़कर सही मुहूर्त तय किया जाता है, "नवरात्रि" में माँ को विशेष मंच दिया जाता है, और "हनुमान जी" की शक्ति से आराधना को दो गुना प्रभाव मिलता है।
अब आप इस गाइड से यह समझ सकते हैं कि अहोई माता की पूजा कैसे योजनाबद्ध होनी चाहिए, कौन‑से उपकरण (पंचांग, शश्ठी तिथि) मददगार हैं, और नवरात्रि में कौन‑से नए पहलू शामिल होते हैं। नीचे दी गई articles में आप तिथि‑विशेष विवरण, वैदिक ज्योतिष के सुझाव, तथा स्थानीय रीति‑रिवाज़ों के उदाहरण पाएँगे, जिससे आपका आभूषण, स्वास्थ्य और मन की शांति में सुधार आएगा। आगे पढ़ते रहें – आपको यहाँ से वही जानकारी मिलेगी जो आपके धार्मिक जीवन को और सरल और समृद्ध बनाती है।

अहोई अष्टमी 2025 की तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त – क्या है सही दिन?
अहोई अष्टमी 2025 का मुख्य व्रत 13 अक्टूबर को है, पूजा का मुहूर्त 5:53‑7:08 PM IST है। माताओं के लिए यह स्वास्थ्य, समृद्धि और आशीर्वाद का प्रतीक है।
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