अहोई अष्टमी: तिथि, व्रत और पूजा की सम्पूर्ण गाइड
जब अहोई अष्टमी, हिंदू कैलेंडर में अनुष्ठानिक महत्व वाला आठवां दिन है, जो विशेष व्रत और पूजा से मनाया जाता है. इसे कभी‑कभी अहोई अष्टमी भी कहा जाता है, तब लोग अपने दिनचर्या में बदलाव करके इस पवित्र समय को सम्मानित करते हैं। इस अष्टमी का प्रमुख लक्ष्य आध्यात्मिक शुद्धि और परित्याग है, इसलिए कई घरों में जल, फल और दान के साथ vrat (व्रत) रखा जाता है।
व्रत, पंचांग और शाश्ठी तिथि का संबंध
अहोई अष्टमी में व्रत, शुद्ध आहार, जागरण और प्रार्थना से जुड़ा धार्मिक अभ्यास मुख्य भूमिका निभाता है। इस व्रत को सही समय पर शुरू और समाप्त करना महत्वपूर्ण है, और इसके लिये पंचांग, तारीख, नक्षत्र, तिथि और योग की जानकारी देने वाला पारम्परिक ग्रन्ट अनिवार्य होता है। पंचांग से हम शाश्ठी तिथि, अहोई अष्टमी के दिन का सौंदर्यपूर्ण और अन्नपूर्णा से जुड़ा विशेष दिन निर्धारित कर सकते हैं, जिससे पूजा के शुभ मुहूर्त का चयन आसान हो जाता है। इस प्रकार, अहोई अष्टमी, व्रत, पंचांग और शाश्ठी तिथि आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं।
इतिहास की नजर डालें तो अहोई अष्टमी का उद्भव प्राचीन वैदिक परम्पराओं से है, जहाँ वन्य जीवों की रक्षा और दशा‑बल की सराहना के लिये इस दिन विशेष अनुष्ठान किए जाते थे। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि इस अष्टमी पर सूरज देवता को अर्पित जल और फूलों की पूजा करने से सुख‑समृद्धि बढ़ती है। इसलिए कई परिवार इस दिन को अपने घर के मुख्य द्वार पर दीप जलाकर, धन्य मंत्रों का जाप करके मनाते हैं। इस अनुष्ठान में अक्सर 'शाश्ठी' की कथा सुनाई जाती है, जो सच्चे मन से किया गया व्रत और आध्यात्मिक प्रयास का प्रतीक है।
आधुनिक समय में भी अहोई अष्टमी का महत्व घटा नहीं है। लोग सोशल मीडिया पर तिथि, पूजा विधि और शुभ समय की जानकारी साझा करते हैं, जिससे दूर‑दूर तक इस अष्टमी की जागरूकता फैलती है। विशेष रूप से व्यस्त शहरी जीवन में पंचांग के आधार पर सही समय चुनना, काम‑स्थल के शेड्यूल के साथ समन्वय करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, इसलिए ऑनलाइन पंचांग एप्लीकेशन और डॉक्टर‑क्लिनिक‑जैसे पोर्टल मददगार होते हैं। इस डिजिटल मदद से व्रत का पालन करने वाले लोगों को धार्मिक अनुशासन में गिरावट नहीं आती।
यदि आप पहली बार अहोई अष्टमी का व्रत रख रहे हैं, तो कुछ सरल टिप्स काम आएँगी। पहला, सुबह जल्दी उठकर जल स्नान करें और मन को शुद्ध करें। दूसरा, पंचांग में बताए गये सुबह के उपयुक्त योग (पूरब) को अपनाएँ। तीसरा, दिन भर हल्का फल, मु्क्काम और दही सेवन करें, जिससे शरीर में ऊर्जा बनी रहे। अंत में, शाम को तुलसी या पुदीने के पत्ते से बने अभिष्ट (अर्पण) को जल में डालकर भगवान को अर्पित करें। इन छोटे‑छोटे कदमों से आपका अहोई अष्टमी का अनुभव और अर्थपूर्ण बनता है।
अब आप जानते हैं कि अहोई अष्टमी, व्रत, पंचांग और शाश्ठी तिथि एक-दूसरे से कैसे जुड़े हैं और किस तरह ये सभी मिलकर आपके जीवन में शांति और समृद्धि लाते हैं। नीचे आप इस अष्टमी से जुड़ी ताज़ा खबरें, पंचांग विवरण, व्रत के शुभ मुहूर्त और आध्यात्मिक लेखों की सूची देखेंगे, जो आपके पूजा‑कार्य को और आसान बनाएगी।

अहोई अष्टमी 2025 की तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त – क्या है सही दिन?
अहोई अष्टमी 2025 का मुख्य व्रत 13 अक्टूबर को है, पूजा का मुहूर्त 5:53‑7:08 PM IST है। माताओं के लिए यह स्वास्थ्य, समृद्धि और आशीर्वाद का प्रतीक है।
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