रेणुका ठाकुर को 1 करोड़ का पुरस्कार, हिमाचल की बेटी ने जीता विश्व कप

रेणुका ठाकुर को 1 करोड़ का पुरस्कार, हिमाचल की बेटी ने जीता विश्व कप

जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने ICC महिला क्रिकेट विश्व कप 2025नवी मुंबई में दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर इतिहास रचा, तो देश के एक छोटे से पहाड़ी गांव में भी एक नई कहानी लिखी गई। रेणुका ठाकुर, जो शिमला जिले के रोहड़ू तहसील के पारसा गांव की बेटी हैं, उनकी तेज गेंदबाजी ने टीम को विश्व चैम्पियन बनाने में अहम भूमिका निभाई। इस जीत के बाद सुखविंदर सिंह सुखु, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, ने सोमवार, 3 नवंबर 2025 को उन्हें 1 करोड़ रुपये का नकद पुरस्कार घोषित किया। ये सिर्फ एक इनाम नहीं — ये एक गांव की सपनों की जीत है, जहां बचपन से कपड़े से बनी गेंद और लकड़ी का बल्ला था।

पारसा गांव में जश्न का माहौल

जब रेणुका की जीत की खबर पारसा गांव पहुंची, तो गांव एक जश्न के त्योहार में बदल गया। लोग नाच-गाए, मिठाइयां बांटीं, और अब सोमवार को पूरे गांव का भोज भी हुआ। रेणुका की मां सुनीता ठाकुर ने कहा, "जश्न तो बहुत होगा। सारे गांव इकट्ठे हो गए हैं, हमारे सम्मानित करेंगे उसको।" गांव के लोगों ने गले लगाकर उनकी जीत का जश्न मनाया — ये कोई सिर्फ एक खिलाड़ी की जीत नहीं, बल्कि उन सबकी जीत है जिन्होंने उन्हें बड़ा किया।

बचपन से लेकर विश्व कप तक की यात्रा

रेणुका का जन्म रोहड़ू के एक साधारण परिवार में हुआ। तीन साल की उम्र में ही उनके पिता केहर सिंह ठाकुर का देहांत हो गया। इस दुख के बीच उनके चाचा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ (HPCA) की धर्मशाला स्थित क्रिकेट अकादमी में भेज दिया। बचपन में वो लड़कों के साथ खेलती थीं — कपड़े से बनी गेंद, लकड़ी का बल्ला, और बिना किसी सुविधा के। उनकी मां ने बताया, "उन्होंने शुरू से ही क्रिकेट खेलने का शौक रखा। घर के पास खेलती थीं, कभी गांव के खुले मैदान में, कभी नाले के किनारे।"

महिला प्रीमियर लीग ने बदल दी राह

रेणुका ने विश्व कप की जीत का श्रेय टीम की एकजुटता और महिला प्रीमियर लीग (WPL) के अनुभव को दिया। उन्होंने कहा, "हमने दबाव से निपटना सीख लिया। टीम में कई गेंदबाज हैं — जब एक बार बल्लेबाज रन बनाने लगे, तो दूसरा गेंदबाज तुरंत दबाव बना देता है।" ये बात बहुत महत्वपूर्ण है — भारतीय महिला क्रिकेट टीम अब सिर्फ ताकत नहीं, बल्कि रणनीति और मानसिकता से भी दुनिया की अगुआ है। विश्व कप के फाइनल में उन्होंने 3 विकेट लिए और दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाजों को चौकों के बजाय छक्के लगाने से रोका।

संघर्ष की कहानी, साधारण जीवन की जीत

रेणुका के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत गरीब रही। "हमारे पास पैसे नहीं होते थे," मां सुनीता ने कहा। गांव के लोग बताते हैं कि रेणुका की गेंदबाजी के लिए बल्ला खरीदने के लिए भी परिवार को बचत करनी पड़ी। अकादमी में जाने के लिए बस का टिकट भी एक बड़ी बात थी। अब जब उन्हें 1 करोड़ का इनाम मिला है, तो ये सिर्फ एक धनराशि नहीं — ये एक सामाजिक संदेश है कि गरीबी और अवसरों की कमी से कोई भी अपना सपना नहीं छोड़ सकता।

अगले कदम: हाटकोटी मंदिर और गांव का आदर

रेणुका अगले सप्ताह घर लौटेंगी। लेकिन पहले वो हाटकोटी मंदिर में माथा टेकेंगी। ये उनकी आस्था का प्रतीक है — जिस तरह उन्होंने गांव के खुले मैदान में गेंद फेंकी, वैसे ही अब देवी के चरणों में अपनी जीत को समर्पित करेंगी। सोमवार को गांव में धाम का आयोजन हुआ, और लोगों ने कहा, "हमारी बेटी ने न सिर्फ देश को जीत दिलाई, बल्कि हमारे गांव का नाम दुनिया के लिए बना दिया।"

क्या इससे अन्य गांवों में बदलाव आएगा?

पहले भी हिमाचल से कई महिला खिलाड़ी आई हैं — जैसे सुष्मा वर्मा, जिन्होंने 2017 के महिला विश्व कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन अब रेणुका की जीत ने एक नया मानक तैयार कर दिया है। गांवों में लड़कियां अब कह रही हैं — "अगर रेणुका ने कपड़े की गेंद से विश्व कप जीत लिया, तो हम क्यों नहीं?" ये एक ऐसा सामाजिक बदलाव है जिसकी गहराई अभी तक पूरी तरह समझी नहीं गई।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

रेणुका ठाकुर को क्यों 1 करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया गया?

हिमाचल प्रदेश सरकार ने रेणुका को इस पुरस्कार से उनके विश्व कप जीतने के लिए सम्मानित किया है, क्योंकि वो देश के लिए इतिहास रच रही हैं — भारत की पहली महिला क्रिकेट टीम का विश्व चैम्पियन बनना। इसके साथ ही, उनकी गरीब पृष्ठभूमि और पहाड़ी गांव की जड़ें इस पुरस्कार को और भी प्रतीकात्मक बनाती हैं।

रेणुका के बचपन में क्रिकेट खेलने में क्या कठिनाइयां थीं?

रेणुका के बचपन में कोई खेल का सुविधा नहीं थी। वो लड़कों के साथ कपड़े से बनी गेंद और लकड़ी के बल्ले से खेलती थीं। घर में पैसे की कमी थी, बस का टिकट भी बचत करके जुटाया जाता था। उनके पिता का देहांत तीन साल की उम्र में हो गया था, और उनके चाचा ने ही उन्हें धर्मशाला की अकादमी में भेजा।

महिला प्रीमियर लीग (WPL) ने रेणुका की जीत में क्या भूमिका निभाई?

WPL ने रेणुका को बड़े मैदानों पर दबाव में खेलने का अनुभव दिया। उन्होंने अपने आप को विदेशी बल्लेबाजों और बड़े स्टेडियम के दर्शकों के सामने तैयार किया। ये अनुभव फाइनल में उनकी शांति और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया — जिससे उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाजों को बिना डरे रोक दिया।

रेणुका की जीत से हिमाचल प्रदेश के अन्य गांवों में क्या बदलाव आ सकता है?

रेणुका की कहानी अब गांवों के लिए एक प्रेरणा बन गई है। लड़कियां अब खेलने के लिए तैयार हैं — चाहे गेंद कपड़े की हो या बल्ला लकड़ी का। स्थानीय शिक्षक और पंचायतें अब खेल के लिए जमीन और बल्ले-गेंद जुटाने की योजना बना रही हैं। ये एक नया सामाजिक चेतना है।

रेणुका के बाद और कौन-सी महिला खिलाड़ी हिमाचल से आई हैं?

पहले हिमाचल से सुष्मा वर्मा ने 2017 के महिला विश्व कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। लेकिन उनकी जीत ने एक नए स्तर का जश्न मनाया है। रेणुका की जीत ने गांवों में खेल के प्रति रुझान बदल दिया है — अब लड़कियां खेलने के लिए नहीं, बल्कि जीतने के लिए तैयार हैं।

रेणुका अगले कदम में क्या करने जा रही हैं?

रेणुका अगले सप्ताह अपने गांव लौटेंगी, लेकिन पहले हाटकोटी मंदिर में माथा टेकेंगी। उनकी मां ने कहा कि वो अपनी जीत को देवी के चरणों में समर्पित करना चाहती हैं। उनके बाद गांव में एक बड़ा आयोजन होगा, जहां उन्हें सम्मानित किया जाएगा।

12 Comments

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    shubham jain

    नवंबर 4, 2025 AT 06:46

    रेणुका ने गरीबी को हराया, न कि सिर्फ दक्षिण अफ्रीका को।

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    Dinesh Kumar

    नवंबर 4, 2025 AT 21:14

    ये जीत सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं-ये उस गांव की आत्मा की जीत है जहां बच्चे खेलते हैं बिना जूतों के, बिना सपोर्ट के, बिना किसी के देखे! इस लड़की ने दिखाया कि जब दिल में आग हो, तो लकड़ी का बल्ला भी विश्व कप जीत सकता है! 🔥🏏

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    anil kumar

    नवंबर 6, 2025 AT 19:56

    क्या आपने कभी सोचा है कि जब एक लड़की गांव के नाले के किनारे गेंद फेंकती है, तो वो न सिर्फ क्रिकेट खेल रही होती है-वो एक समाज के अंधेरे को चीर रही होती है? रेणुका की गेंद एक नया विचार लेकर आई-कि ताकत सिर्फ मांसपेशियों में नहीं, बल्कि इच्छाशक्ति में होती है। उसकी जीत ने एक पहाड़ी के बच्चों को सिखाया कि तुम्हारी जड़ें तुम्हें नीचा नहीं, बल्कि ऊंचा बनाती हैं।

    हम जब टीवी पर देखते हैं विश्व कप के छक्के, तो सोचते हैं-अरे, ये तो बड़े शहरों के बच्चे ही कर सकते हैं। पर रेणुका ने दिखाया कि असली ताकत वो है जो बिना एयर कंडीशनर, बिना जिम, बिना कोच के, बस एक चाचा के विश्वास और मां की चुपचाप दुआ से बनती है।

    क्या हमने कभी अपने गांव के बच्चों को एक असली बल्ला दिया? या हम तो बस उनकी जीत पर तालियां बजाते हैं? रेणुका का 1 करोड़ इनाम तो बहुत अच्छा है, पर अगर उसके गांव में एक खेल का मैदान नहीं बनेगा, तो ये इनाम बस एक फोटो के लिए है।

    मैंने देखा है कैसे बच्चे गांव में टायर के टुकड़े से गेंद बनाते हैं। उनकी आंखों में वही चमक है जो रेणुका की आंखों में थी। हमें उन आंखों को बचाना है-न कि उनकी जीत को सिर्फ ट्रेंड में बदल देना।

    अगर हम अपने शहरों में एक भी लड़की को अपने घर के बाहर खेलने नहीं देते, तो हम रेणुका की जीत को नकल नहीं, बल्कि अपमान कर रहे हैं।

    उसकी जीत ने न सिर्फ टीम को विश्व चैंपियन बनाया, बल्कि हमारे दिमाग को भी चुनौती दी। क्या हम अपने बच्चों को खेलने का मौका देंगे? या हम उन्हें बस पढ़ाई के लिए बांध देंगे?

    रेणुका ने दिखाया कि जीत का अर्थ सिर्फ ट्रॉफी नहीं, बल्कि एक नए सपने का जन्म है।

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    shivam sharma

    नवंबर 8, 2025 AT 08:06

    हिमाचल की लड़की ने दुनिया जीत ली और तुम लोग अभी तक बात कर रहे हो? भारत की लड़कियां कभी नहीं हारतीं अगर उन्हें मौका मिले! बस इतना ही चाहिए-मौका! बाकी सब तो हमारे DNA में है!

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    Sanjay Gandhi

    नवंबर 10, 2025 AT 02:16

    क्या आप जानते हैं कि रेणुका के गांव में अब लड़कियां रात को भी खेलती हैं? उनके पास बिजली नहीं है, पर चांदनी में वो गेंद फेंकती हैं-जैसे कि चांद भी उनका सपोर्टर है। ये कोई खेल नहीं, ये एक अध्यात्मिक यात्रा है। गेंद उनकी दुआ है, बल्ला उनकी जीवन रेखा है।

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    fatima mohsen

    नवंबर 11, 2025 AT 07:36

    ये सब बहुत अच्छा लगा, पर अब बताओ-इसके बाद उसकी शादी कब होगी? इतनी सफल लड़की के लिए तो कोई अच्छा घर ढूंढना चाहिए, न कि बस खेलती रहना! 😒

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    Ali Zeeshan Javed

    नवंबर 11, 2025 AT 17:46

    मैंने रेणुका के गांव के बारे में सुना और दिल भर गया। मेरा दादा भी एक छोटे से गांव से थे-वो बिना जूते खेलते थे। अगर हम इन बच्चों को बस एक बल्ला दे दें, तो वो दुनिया बदल देंगे। ये सिर्फ खेल नहीं, ये हमारी जिम्मेदारी है।

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    Žééshañ Khan

    नवंबर 12, 2025 AT 08:52

    सरकार द्वारा प्रदान किया गया धनराशि आर्थिक सहायता के रूप में पर्याप्त नहीं है। अवसरों के समानांतर व्यवस्थित नीतियों की आवश्यकता है।

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    ritesh srivastav

    नवंबर 12, 2025 AT 20:58

    अरे भाई, ये सब जश्न क्यों? अगर ये लड़की नहीं खेलती तो क्या भारत गिर जाता? अभी तक कोई लड़की ने विश्व कप नहीं जीता था? अब तो इसके लिए त्योहार क्यों?

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    sumit dhamija

    नवंबर 12, 2025 AT 21:39

    रेणुका की जीत ने मुझे याद दिलाया कि असली सफलता तब मिलती है जब आप अपने आप को नहीं, बल्कि अपने गांव को याद करते हैं। उसके बाद कोई भी ताकत उसे रोक नहीं सकती।

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    Aditya Ingale

    नवंबर 14, 2025 AT 06:32

    देखो ये लड़की-बिना एयर कंडीशनर, बिना एंटीबॉडी वाले जूते, बिना एक्सपर्ट कोच के... और फिर भी विश्व कप! ये नहीं कि वो जीत गई, ये कि वो खेलने के लिए जी रही थी। ये वो है जो हम भूल गए।

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    Aarya Editz

    नवंबर 15, 2025 AT 15:30

    हर जीत के पीछे एक अनकही कहानी होती है। रेणुका की कहानी ये है कि जब आप अपने आंतरिक आवाज़ को सुनते हैं, तो बाहर की आवाज़ें बस शोर बन जाती हैं।

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