बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल चुनाव 2025: BPF ने 28 सीटें जीतकर तोड़ा BJP का दशकों का राज

बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल चुनाव 2025: BPF ने 28 सीटें जीतकर तोड़ा BJP का दशकों का राज

22 सितंबर, 2025 को हुए बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (BTC) चुनाव के नतीजे असम की राजनीति के खेल को हमेशा के लिए बदल दिए। Bodoland People's Front (BPF) ने 40 में से 28 सीटें जीतकर एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की, जबकि अपने ही गठबंधन का सदस्य Bharatiya Janata Party (BJP) केवल 5 सीटों पर सीमित रह गया। यह नतीजा न सिर्फ एक चुनाव का बदलाव है — यह एक राजनीतिक भूकंप है।

क्यों यह चुनाव इतना महत्वपूर्ण है?

बोडोलैंड टेरिटोरियल क्षेत्र (BTR) में शामिल पांच जिले — कोकराझार, चिरांग, उड़लगुड़ी, बाक्सा और तामुलपुर — असम विधानसभा के 126 सीटों में से 19 सीटों का घर हैं। यानी, ये चुनाव 2026 के राज्य चुनाव का असली अर्ध-फाइनल हैं। जब BJP ने अपने मुख्यमंत्री Himanta Biswa Sarma के नेतृत्व में इस क्षेत्र में लगातार रैलियां लगाईं, तो उनका लक्ष्य स्पष्ट था: अपनी राष्ट्रीय छवि को स्थानीय स्तर पर भी मजबूत करना। लेकिन वोटर्स ने एक साफ संदेश भेजा — हम राष्ट्रीय पार्टी के नाम से नहीं, बल्कि स्थानीय नेतृत्व और आदिवासी मुद्दों के आधार पर वोट करते हैं।

पिछले चुनावों से क्या बदला?

पिछले BTC चुनाव में BPF ने 17 सीटें जीती थीं, BJP को सिर्फ 9 मिली थीं। उसके बाद BJP ने BPF के साथ तालमेल तोड़कर United People's Party Liberal (UPPAL) के साथ गठबंधन किया, जिसके 12 सीटें थीं। इस गठबंधन से BJP ने चार साल तक BTC को शासित किया, जबकि BPF विपक्ष में रहा। लेकिन अब सब कुछ उलट गया। BPF ने अपने अध्यक्ष Pramod Boro के नेतृत्व में अपनी जनसमर्थन की शक्ति को दिखाया — उन्होंने दक्षिण धूबरी सीट पर 7,164 वोट प्राप्त किए, जबकि उनके कांग्रेस प्रत्याशी ने सिर्फ 1,593 वोट पाए।

कांग्रेस का शून्य: एक राजनीतिक खालीपन

यह चुनाव कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका भी रहा। वे 40 में से कोई भी सीट नहीं जीत पाए। यह उनके लिए सिर्फ एक हार नहीं, बल्कि एक पूर्ण विफलता है। असम में कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी विफलता इस चुनाव में हुई। इस खालीपन ने राजनीतिक विश्लेषकों को एक नया सवाल पूछने पर मजबूर कर दिया — क्या BPF और कांग्रेस 2026 के लिए एक गठबंधन बना सकते हैं? दोनों ही पार्टियां अपने-अपने आदिवासी और स्थानीय आधार को बचाने के लिए तैयार हैं। यह एक अनोखा गठबंधन हो सकता है — एक जिसमें नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस का सदस्य (BPF) और राष्ट्रीय विपक्ष (कांग्रेस) एक साथ आएं।

BJP की रणनीति में तहलका

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने चुनाव से पहले रैलियों के जरिए अपनी जनता को बताया कि वोट देने से नरेंद्र मोदी की योजनाएं लाभान्वित होंगी। उन्होंने रब्हा हासोंग स्वायत्त परिषद चुनाव में 33 सीटें जीतने के बाद ट्वीट किया: "असम में एक और सफेद लहर!" लेकिन BTC के नतीजे उनके इस आत्मविश्वास को चुनौती देते हैं। यहां जनता ने राष्ट्रीय नारे की बजाय स्थानीय नेता को चुना। यह एक संकेत है कि BJP का असम में अजेय होने का मिथक टूट चुका है।

असम की राजनीति का भविष्य: क्या आगे होगा?

2026 के विधानसभा चुनाव के लिए BJP का लक्ष्य 95 सीटें जीतना था। लेकिन अब यह लक्ष्य दूर हो गया है। BPF की जीत ने विपक्ष को नई ऊर्जा दी है। विश्लेषकों का मानना है कि अब BJP को असम में अपनी रणनीति बदलनी होगी — न केवल BPF के साथ लड़ना होगा, बल्कि उसके स्थानीय आधार को समझना होगा। यह चुनाव दिखाता है कि असम की राजनीति अब सिर्फ BJP और कांग्रेस की लड़ाई नहीं रह गई। आदिवासी समुदाय की आवाज, उनके नेता और स्थानीय स्वायत्तता के मुद्दे अब मुख्य खेल के अंग बन गए हैं।

वोटर क्यों बदल गया?

एक बात साफ है — वोटर्स ने राष्ट्रीय नारे की बजाय स्थानीय नेतृत्व को प्राथमिकता दी। BPF के नेता हरगामा मोहिलारी की राजनीतिक वापसी ने इसे और बढ़ाया। उन्होंने दशकों तक BJP के दबदबे के बाद अपनी पार्टी को फिर से शक्तिशाली बनाया। लोगों ने देखा कि BPF सिर्फ नारे नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर काम करती है — भूमि के मुद्दे, शिक्षा, स्वास्थ्य और आदिवासी संस्कृति की संरक्षण। BJP की रैलियां तो बहुत थीं, लेकिन वोटर्स ने कहा — हमें वादे नहीं, विकास चाहिए।

क्या अब बदलेगा असम का राजनीतिक नक्शा?

जब एक गठबंधन का सदस्य अपने साथी को चुनाव में हरा दे, तो वह गठबंधन का असली अर्थ ही बदल जाता है। BPF की जीत ने अब निर्णय लेने का बोझ BJP पर डाल दिया है। क्या वे BPF के साथ फिर से बातचीत शुरू करेंगे? या उन्हें UPPAL के साथ रहना ही पड़ेगा — जो अब सिर्फ 7 सीटों पर सीमित है? इसके अलावा, अगर BPF और कांग्रेस एक साथ आ जाएं, तो 2026 का चुनाव एक तीन-पक्षीय लड़ाई बन जाएगा। यह असम की राजनीति के लिए एक नया युग शुरू कर सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

BPF ने इतनी बड़ी जीत कैसे हासिल की?

BPF ने स्थानीय आदिवासी बोडो समुदाय के आधार पर एक गहरी राजनीतिक रणनीति बनाई। उन्होंने भूमि अधिकार, स्थानीय शिक्षा और संस्कृति संरक्षण जैसे मुद्दों पर फोकस किया, जबकि BJP ने राष्ट्रीय नारे पर जोर दिया। इस अंतर ने वोटर्स को प्रभावित किया।

BJP की हार का क्या असर 2026 के असम विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा?

19 BTC सीटें 2026 के 126 विधानसभा सीटों का हिस्सा हैं। BJP की यह हार उनके 95 सीट के लक्ष्य को गंभीर रूप से चुनौती देती है। विश्लेषक मानते हैं कि BJP को अब असम में अपनी रणनीति पूरी तरह बदलनी होगी — स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देना होगा।

कांग्रेस ने कोई सीट नहीं जीती — क्या अब वह बेमानी है?

कांग्रेस की पूर्ण हार ने उसकी असम में अस्तित्व की चुनौती को उजागर किया। लेकिन अब BPF के साथ संभावित गठबंधन उसके लिए एक नया रास्ता खोल सकता है। दोनों पार्टियां आदिवासी मुद्दों पर सहमत हैं — यह एक अनोखा विपक्षी गठबंधन बन सकता है।

BPF और BJP के बीच रिश्ते क्या होंगे अब?

BPF, NDA का सदस्य है, लेकिन अब यह उसके सबसे शक्तिशाली सदस्य बन गया है। BJP को अब यह तय करना होगा कि क्या वे BPF के साथ फिर से गठबंधन करेंगे, या UPPAL के साथ रहेंगे — जो अब बहुत कमजोर है। इस असमंजस के कारण NDA की एकता अब सवाल के निशाने पर है।