बिहार मौसम अपडेट: सितंबर में तेज गर्मी, कमजोर मॉनसून से बढ़ी परेशानी

बिहार मौसम अपडेट: सितंबर में तेज गर्मी, कमजोर मॉनसून से बढ़ी परेशानी

सितंबर की तपिश और नमी: पटना से पूरे बिहार तक

सुबह निकलते ही पसीना और दोपहर तक माथे पर धूप का तेज—यही इस वक्त का बिहार मौसम है। सितंबर 2025 में राज्य भर में तापमान 27–34°C के बीच झूल रहा है। पटना में दिन का पारा अक्सर 32–33°C तक पहुंच रहा है। असली मुश्किल तापमान से ज्यादा नमी है, जो शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकलने देती और “रीयल फील” को कुछ डिग्री बढ़ा देती है। डॉक्टर बार-बार पानी और तरल पीने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि इस तरह की उमस में डीहाइड्रेशन जल्दी होता है।

मॉनसून अभी गया नहीं है, पर अपनी पूरी ताकत में भी नहीं है। यही कारण है कि महीने भर में करीब 8 से 15 दिन बारिश के संकेत हैं—कभी फुहारें, कभी एक-दो घंटे की तेज बौछार, और बाकी दिन तेज धूप व उमस। बरसात की ये आवा-जाही थोड़ी राहत देती है, लेकिन जैसे ही बादल छंटते हैं, गर्मी फिर से हावी हो जाती है। इस ट्रांजिशन फेज में मौसम दिन-दो दिन में करवट लेता दिखता है।

ऐसा क्यों हो रहा है? सितंबर के आखिर-आखिर तक आते-आते मॉनसून कमजोर स्पेल में चला जाता है। बादल छंटते हैं तो जमीन और कंक्रीट तेजी से गरम होते हैं। जिस दिन धूप खुली रहती है, उस दिन अधिकतम तापमान ऊपर चढ़ जाता है। रात को भी नमी बनी रहती है, इसलिए राहत कम मिलती है। पटना, गया, मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में कंक्रीट, ट्रैफिक और कम हरियाली “अर्बन हीट” बढ़ाते हैं।

लोगों की दिनचर्या पर सीधा असर दिख रहा है—दोपहर की आउटडोर ड्यूटी भारी पड़ रही है, सफर में थकान ज्यादा लग रही है और स्कूली बच्चों के लिए दोपहर का समय असहज हो गया है। जिन घरों में कूलर या एसी नहीं है, वहां रात में भी पसीना परेशान करता है।

बारिश कब और कैसी? किसानों और शहरों के लिए मायने

बारिश कब और कैसी? किसानों और शहरों के लिए मायने

इस महीने की बरसात ज्यादातर रुक-रुककर होती है—कहीं तेज बौछारें, कहीं सिर्फ उमस के साथ बूंदाबांदी। लोकल स्तर पर गरज-चमक वाली गतिविधि भी देखने को मिलती है, यानी एक इलाके में तेज बारिश और पास ही सूखा। ऐसी बारिश से तापमान कुछ घंटों के लिए गिरता है, पर नमी और भी बढ़ जाती है। कुछ जगहों पर अचानक तेज बौछार नालों को भर देती है, निचले इलाकों में पानी भरने की दिक्कत भी आती है।

कृषि पर असर सीधा है। धान इस समय बढ़त और फूल आने के चरण में होता है, जहां लगातार नमी तो चाहिए, पर खड़ी फसल में पानी का ठहराव नुकसान कर सकता है। अनियमित बारिश का मतलब है—किसानों को सिंचाई और जल निकासी दोनों पर नजर रखनी होगी।

  • खेत में पानी का स्तर बराबर रखें—अतिरिक्त पानी तुरंत निकाले, खासकर भारी बौछार के बाद।
  • छिड़काव की योजना बारिश के बीच के खिड़की वाले दिनों में करें, ताकि दवा धुल न जाए।
  • लंबे उमस भरे दौर में फफूंदजनित रोगों का रिस्क बढ़ता है; खेत का रोज निरीक्षण करें और शुरुआती लक्षण दिखते ही सलाह लेकर कदम उठाएं।
  • डीजल पंप या सोलर पंप की सर्विसिंग पहले से कर लें, ताकि जरूरत पर सिंचाई रुक न जाए।

शहरों के लिए काम की बात—गर्मी और नमी से बिजली की खपत बढ़ती है। पीक ऑवर में लोड बढ़ने से लोकल फॉल्ट का खतरा रहता है। पानी की बोतल साथ रखना, धूप में छोटी-छोटी दूरी के लिए भी ऑटो या बस का इस्तेमाल, और छांह वाले रास्ते चुनना व्यावहारिक तरीके हैं।

  • 10 बजे से 4 बजे के बीच बाहर निकलना कम करें; आउटडोर काम सुबह-सुबह या शाम को शेड्यूल करें।
  • हर आधे घंटे में कुछ घूंट पानी पिएं; भारी मीठे/कार्बोनेटेड ड्रिंक्स से बचें, ओआरएस बेहतर विकल्प है।
  • ढीले, हल्के रंग के सूती कपड़े पहनें; सिर पर कैप/स्कार्फ रखें।
  • गाड़ी पार्क करते समय विंडो शेड लगाएं; अंदर का केबिन बहुत गरम हो तो एसी चालू करने से पहले खिड़कियां खोलकर हवा चलने दें।
  • बारिश के बाद सड़कों पर फिसलन और गड्ढों से सावधान रहें; टू-व्हीलर पर स्पीड सीमित रखें।

स्वास्थ्य के मोर्चे पर, हीट एग्जॉसन और हीट क्रैम्प्स के लक्षणों को हल्के में न लें—चक्कर, सिरदर्द, मांसपेशियों में ऐंठन, तेज धड़कन या उलझन दिखे तो तुरंत छांह में बैठकर पानी/ओआरएस लें। बुजुर्ग, छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं और बाहर काम करने वाले लोग ज्यादा संवेदनशील होते हैं। अगर लक्षण 30 मिनट में कम न हों, तो मेडिकल मदद लें।

मॉनसून की विदाई की बात करें तो आमतौर पर पूर्वी भारत में यह प्रक्रिया अक्टूबर के पहले पखवाड़े से दिखने लगती है। इस साल भी संकेत उसी दिशा में हैं—यानी सितंबर के बाकी दिनों में पैटर्न बदल-बदलकर चलेगा: दो-तीन दिन तेज धूप और उमस, फिर एक-दो दिन की बारिश, और फिर वही सिलसिला। ऐसे में प्लानिंग इसी मानकर करें कि बारिश अस्थायी राहत देगी, पर गर्मी और नमी बार-बार लौटेगी।

घर-परिवार के स्तर पर छोटे कदम भी बहुत काम आते हैं—कमरों में क्रॉस-वेंटिलेशन, दिन में परदे/ब्लाइंड से सीधी धूप रोकना, किचन में एग्जॉस्ट फैन, और रात में छत/बालकनी पर कुछ समय बिताना। अगर मोहल्ले में पार्क या बड़ी पेड़-पंक्ति है तो शाम की वॉक वहीं करें; पक्की सड़कों की गर्मी देर तक निकलती है, वहां गर्मी ज्यादा लगती है।

तस्वीर साफ है—सितंबर में गर्मी और नमी साथ-साथ चलेंगी, बीच-बीच में बरसात राहत का छोटा सा ब्रेक देगी। अपनी दिनचर्या, सफर और कामकाज को इसी हिसाब से एडजस्ट करें—हाइड्रेशन, छांह और समय की समझदारी से यह दौर आसानी से निकलेगा।