शरद पूर्णिमा: एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व
शरद पूर्णिमा का पर्व हिंदू रीति-रिवाजों और मान्यताओं में एक विशेष स्थान रखता है। यह पर्व अश्विन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन का महत्व लोगों को उनके जीवन में सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य में वृद्धि के लिए प्रोत्साहित करता है। इस वर्ष 2024 में शरद पूर्णिमा की सही तिथि को लेकर लोगों के बीच काफी भ्रम है।
तिथि के निर्धारण का महत्व
डॉ. मृृत्युंजय तिवारी, जो कि श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रमुख हैं, उन्होंने बताया कि उडया तिथि के माध्यम से इस पर्व की सही तिथि का निर्धारण होता है। उनकी दृष्टि में इस बार शरद पूर्णिमा का पर्व 16 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसके प्रकाश में, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस प्रकार के धार्मिक मामलों में सटीकता बरती जाए ताकि सभी धार्मिक क्रिया-कर्म सही तरीके से सम्पन्न हो सकें।
शरद पूर्णिमा की पारंपरिक प्रक्रियाएँ और उनका महत्व
इस पावन अवसर पर भक्तगण पवित्र नदी में स्नान करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। माना जाता है कि यह दिन विशेष प्रकार के धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ होता है और इसे करने से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आती है। साथ ही इस दिन चाँदनी में खीर रखने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों से खीर में औषधीय गुण समाहित हो जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी लोग इस परंपरा का पालन करते हैं।
भद्रा और रोग पंचक का प्रभाव
इस वर्ष की शरद पूर्णिमा को एक विशेष ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि इस दिन भद्रा और रोग पंचक लग रहे हैं, जिन्हें ज्योतिषीय दृष्टि से अशुभ माना जाता है। इस स्थिति में खीर चाँदनी में रखने की प्रक्रिया पर कुछ लोग विलंब या संशय कर सकते हैं। फिर भी, डॉ. तिवारी के अनुसार, ये समय कुछ सावधानियों के साथ भी शुभ और फायदेमंद बन सकते हैं।
उचित समय और तिथियों का महत्व
डृक पंचांग के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को अति शुभ माना जाता है, और इसी रात को खीर को चाँदनी में रखने का विशेष महत्व है। इसके लिए सही मुहूर्त की जानकारी होना अनिवार्य है ताकि इस परंपरा का पूरा अधिग्रहण किया जा सके। इस पर्व के दौरान सही तिथि का पालन करना महत्वपूर्ण है ताकि पारंपरिक विधि-विधानों का समुचित लाभ प्राप्त हो सके।
अतः, अपने विश्वास और आस्था के अनुसार, इस पर्व को सही तरीके से मनाना चाहिए। यह एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि संस्कृति और परंपरा की दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध है।