लोकसभा में 'जय फिलिस्तीन' नारे पर असदुद्दीन ओवैसी का जवाब: 'खाली धमकियाँ काम नहीं करेंगी'

लोकसभा में 'जय फिलिस्तीन' नारे पर असदुद्दीन ओवैसी का जवाब: 'खाली धमकियाँ काम नहीं करेंगी'

लोकसभा में बहस की शुरुआत

एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में सांसद के रूप में शपथ लेने के दौरान 'जय तेलंगाना' और 'जय फिलिस्तीन' के नारे लगाए, जिससे राजनीतिक हलकों में बड़ी हलचल मच गई। ओवैसी के इस कदम की व्यापक रूप से आलोचना हो रही है। कई लोगों ने उनके बयान को अपमानजनक और अनुचित बताया। उन्होंने संसद में अपने शब्दों का बचाव किया और कहा कि उनके ये शब्द भारतीय संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करते हैं।

ओवैसी का बचाव

ओवैसी ने अपने बयान का बचाव करते हुए कहा कि 'खाली धमकियाँ' उन्हें डराने का काम नहीं करेंगी। उन्होंने कहा कि उनका शपथ ग्रहण के दौरान दिया गया बयान कोई अपराध नहीं है और उन्होंने संसद में अपनी जिम्मेदारियों का पालन किया है। उन्होंने आगे कहा कि फिलिस्तीन के लोगों की स्थिति दयनीय है और इस मुद्दे पर चुप्पी साधना एक नैतिक अत्याचार है।

महात्मा गांधी का संदर्भ

महात्मा गांधी का संदर्भ

अपने तर्क को मजबूत करने के लिए ओवैसी ने महात्मा गांधी का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि गांधी जी ने भी फिलिस्तीन पर टिप्पणी की थी और फिलिस्तीन के लोगों की दुर्दशा को पहचाना था। ओवैसी ने साफ किया कि उनका उद्देश्य महज उन लोगों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करना था, जो दशकों से संघर्ष कर रहे हैं।

संसदीय मामलों के मंत्री की प्रतिक्रिया

संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने ओवैसी के बयान पर प्रश्न उठाया। उन्होंने कहा कि शपथ के दौरान किसी अन्य देश के समर्थन में नारे लगाने की प्रथा पर विचार किया जाना चाहिए। रिजिजू ने इस मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए संसद के नियमों की जांच की आवश्यकता पर जोर दिया।

आलोचनाएं और समर्थन

आलोचनाएं और समर्थन

ओवैसी के इस बयान पर अन्य सांसदों ने भी प्रतिक्रिया दी। कुछ ने इसे अनुचित और अनैतिक कहा, वहीं कुछ ने इसे एक बोलने की स्वतंत्रता का प्रतीक माना। उन्होंने कहा कि ओवैसी के इस कदम से अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भारतीय संसद में चर्चा की जरूरत पर बल मिला है।

लोकसभा की भूमिका

इस प्रकार के मुद्दे संसद की भूमिका और इसकी प्रक्रियाओं के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाते हैं। सवाल उठता है कि शपथ ग्रहण जैसे आधिकारिक पलों में क्या बोलना उचित है और क्या नहीं। यह बहस भारतीय लोकतंत्र की संवेदनशीलताओं को भी उजागर करती है।

अंततः, असदुद्दीन ओवैसी का यह कदम न केवल उनकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, बल्कि एक व्यापक मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास भी है। ओवैसी की प्रतिक्रिया और अन्य सांसदों की निंदा के साथ, यह स्पष्ट है कि यह मामला सिर्फ संसद तक सीमित नहीं रहेगा। यह आगे चलकर भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है, जिसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर कई विवादास्पद प्रवृत्तियों का खुलासा हो सकता है।

10 Comments

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    Debakanta Singha

    जून 27, 2024 AT 13:32
    इस तरह के नारे लगाना संसद में ठीक नहीं है। ये जगह राष्ट्रीय हितों की बातचीत के लिए है, न कि विदेशी मुद्दों पर नाराजगी जताने के लिए।
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    tejas cj

    जून 28, 2024 AT 00:48
    ओवैसी को लगता है वो दुनिया का न्याय कर रहा है लेकिन असल में वो बस ध्यान खींच रहा है। अपने घर की बात सुनो पहले भाई।
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    Payal Singh

    जून 29, 2024 AT 13:28
    हर किसी के लिए अपनी आवाज़ उठाने का अधिकार है, लेकिन संसद का माहौल अलग है। ये नारे एक राजनीतिक संकेत हैं, और उनका असर दूर तक जाता है। हमें संवेदनशीलता और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना होगा।
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    Anupam Sharma

    जून 29, 2024 AT 21:48
    गांधी जी ने फिलिस्तीन के बारे में बात की थी? अरे भाई वो तो बस अपने आप को इतिहास का हिस्सा बनाना चाहते हैं। और फिर ये सब नारे लगाकर नेट पर ट्रेंड करवाना। बस एक शो है।
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    swetha priyadarshni

    जुलाई 1, 2024 AT 12:13
    फिलिस्तीन का मुद्दा एक मानवीय आपातकाल है। जब दुनिया के लाखों लोग बेघर हैं, तो क्या उनके लिए आवाज़ उठाना गलत है? अगर ओवैसी ने ये बात नहीं कही, तो कौन कहता? संसद तो एक ऐसी जगह है जहां अलग-अलग आवाज़ें सुनी जानी चाहिए, न कि चुप रहने की आदत डाल दी जाए।
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    Manu Metan Lian

    जुलाई 3, 2024 AT 01:56
    यह बयान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत अनुचित है। शपथ ग्रहण का अर्थ देश के प्रति प्रतिबद्धता है, न कि विदेशी राजनीति के समर्थन में रैली करना। इस तरह के व्यवहार को संसदीय नियमों के तहत दंडित किया जाना चाहिए।
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    Liny Chandran Koonakkanpully

    जुलाई 3, 2024 AT 03:58
    असदुद्दीन ओवैसी को लगता है कि वो एक नेता हैं... लेकिन असल में वो एक ट्रेंड चाहने वाला टिकटॉकर है। ये नारे लगाकर उसका लक्ष्य बस एक वीडियो बनाना है जिसके लिए वो खुद को शहीद बना रहा है।
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    Khaleel Ahmad

    जुलाई 4, 2024 AT 05:41
    संसद में शपथ लेते समय जो भी कहा जाए, उसका अर्थ उसके दिल से निकलना चाहिए। अगर ओवैसी को फिलिस्तीन के लोगों की दुर्दशा से दर्द है, तो उसे अपने तरीके से बोलने दो। बस उसका तरीका अलग है।
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    Pooja Mishra

    जुलाई 5, 2024 AT 23:15
    ये सब बहस बेकार है। ओवैसी ने जो कहा, वो सच है। फिलिस्तीन के बच्चे मर रहे हैं, घर बर्बाद हो रहे हैं, और हम यहां शपथ के नियमों के बारे में बहस कर रहे हैं? ये भारत का नैतिक अपराध है।
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    Chandrasekhar Babu

    जुलाई 6, 2024 AT 18:43
    इस घटना को राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक और अंतरराष्ट्रीय न्याय के संदर्भ में देखना चाहिए। ओवैसी के बयान के अंतर्गत एक एथिकल डायलॉग की आवश्यकता है, जो संसदीय व्यवहार के नियमों को चुनौती देता है। इसका विश्लेषण राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों के आधार पर किया जाना चाहिए।

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