एशियाई बाजारों में उतार-चढ़ाव: अमेरिकी-चीन व्यापार मामलो और मौद्रिक नीति के असर

एशियाई बाजारों में उतार-चढ़ाव: अमेरिकी-चीन व्यापार मामलो और मौद्रिक नीति के असर

एशिया के शेयर बाजारों में बेमेल चाल: क्या चल रहा है?

एशियाई बाजार इन दिनों किसी रोलरकोस्टर की तरह बर्ताव कर रहे हैं। कहीं तेजी है तो कहीं मायूसी। उदाहरण के लिए, हांगकांग का हैंग सेंग इंडेक्स बढ़ा, लेकिन शंघाई कंपोजिट में गिरावट रही—दोनों बाजारों का मिजाज एक जैसा नहीं दिखा। जापान का निक्केई 225 उछला, खासकर उन कंपनियों की बदौलत जो निर्यात करती हैं और जिनकी कमाई कमजोर येन के चलते और बढ़ गई। वहीं, दक्षिण कोरिया के बाजार ने निवेशकों को निराश किया, क्योंकि वहां 2022 के बाद पहली बार जीडीपी घटी और शेयरों में बेचवाली हावी रही।

ये सारे बदलाव अचानक नहीं आए। इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ है अमेरिकी-चीन व्यापार संबंधों का। कुछ दिन पहले जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ये संकेत दिए कि चीन पर लगने वाले टैक्स बहुत नहीं बढ़ेंगे, निवेशक सुधरते हालात के आसार देखने लगे थे। लेकिन उसके बाद अचानक अमेरिका के कमजोर मैन्युफैक्चरिंग डेटा और दक्षिण कोरिया की धीमी अर्थव्यवस्था ने हालात को फ‍िर से उलझा दिया। बाजारों में उतार-चढ़ाव बढ़ गया।

मौद्रिक नीतियों और सेक्टोरल चाल की उलझन

मौद्रिक नीतियों और सेक्टोरल चाल की उलझन

केंद्रीय बैंक भी अपने-अपने हिसाब से नीतियां बदल रहे हैं। कुछ देशों में ब्याज दरें धीरे-धीरे बढ़ाई जा रही हैं, कुछ जगह स्थिर हैं। इससे मुद्रा बाजार और भी ज्यादा संवेदनशील हो गया है। डॉलर और येन जैसी बड़ी मुद्राओं में अचानक उतार-चढ़ाव निवेशकों के लिए सिरदर्द बना रहा है।

ऐसी स्थिति में निवेशकों ने पूरी की पूरी मार्केट पर दांव लगाने के बजाय चुनिंदा सेक्टरों पर भरोसा दिखाया। चीन के इंडस्ट्रियल शेयर, जैसे मैन्युफैक्चरिंग या मशीनरी कंपनियां, ने तो बाकी से बेहतर प्रदर्शन किया। इन कंपनियों की मांग वैश्विक मंदी के बावजूद बनी रही—इसने निवेशकों का भरोसा बनाए रखा। उधर, जापानी निर्यातक कंपनियां कमजोर येन की वजह से ज्यादा मुनाफा दिखाने लगी, क्योंकि उनका माल बाहर बेचते वक्त ज्यादा येन में मिलता है।

फिलहाल, एशियाई बाजारों के लिए तस्वीर बहुत साफ नहीं है। अमेरिकी-चीन व्यापार की सुर्खियां या तो नि‍वेशकों को राहत देती हैं या बेचैनी बढ़ाती हैं। उधर, कमजोर उत्पादन आंकड़े और नए आर्थिक आंकड़े हालात को और पेचीदा कर रहे हैं। यही वजह है कि निवेशक अब सीधे जोखिम लेने से बच रहे हैं; वे या तो पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई कर रहे हैं या फ्यूचर में हेजिंग जैसी रणनीतियां आजमा रहे हैं।

इस माहौल में हर नई नीति, हर ताजा आंकड़ा एशिया के बाजारों को नया रास्ता दे सकता है। कोई एक बड़ी खबर, चाहे वह चीन के व्यापार टैक्स को लेकर हो या अमेरिकी फैक्ट्री उत्पादन नंबरों पर, तुरंत असर डालती है और बाजार पलट जाते हैं। इसलिए फिलहाल, निवेशकों के लिए सतर्क रहना और हर छोटे-बड़े संकेत पर नजर रखना मजबूरी है।